चंद्रयान 2: एक चर्चा By Yukti Publication
चंद्रयान 2: लॉन्चिंग से लेकर अब तक की पूरी कहानी-
चांद हमेशा से ही इंसान के लिए एक कौतूहल का विषय रहा है। इसे लेकर हमेशा से ही वैज्ञानिक और पूरी मानव जाति जिज्ञासु रही है। पृथ्वी के सबसे करीब और सबसे ठंडे इस ग्रह को पृथ्वी से बाहर जीवन के लिए काफी उपयुक्त माना जाता रहा है। यही वजह है कि अनेक देशों की अंतरिक्ष एजेंसियां समय-समय पर चांद पर अपने यान भेजती रही हैं।
भारत भी इस कार्य में पीछे नहीं है। भारत ने अंतरिक्ष में लगातार नई उपलब्धियां हासिल की हैं। पहले चंद्रमिशन चंद्रयान-1 की सफलता के बाद ही चंद्रयान-2 की तैयारी शुरू हो गई थी। तमाम चुनौतियों को पार करता हुआ भारत आज अंतरिक्ष की दुनिया में काफी ऊंची छलांग लगाने के साथ ही वैश्विक स्तर पर अपनी मजबूत पहचान बना चुका है। दुनिया के कई देश अपना-अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम भी चला रहे हैं। आइए जानते हैं दुनिया के शीर्ष 10 देशों के बारे में जिन्होंने अंतरिक्ष में अपनी उपस्थिति दर्ज की है
अमेरिका: हालांकि ब्रह्मांड का अन्वेषण करने वाला यह पहला देश नहीं था लेकिन पृथ्वी से बाहर भेजे सबसे अधिक अंतरिक्ष मिशन का संख्या इनके नाम हैं। इनका पहला स्पेस फ्लाइट बुध कार्यक्रम के तहत रहा। दूसरा प्रोग्राम जेमिनी था जिसका जीवनकाल 6 साल था। सबसे लोकप्रिय स्पेस मिशन अपोलो रहा है।
रूस: रूस दुनिया का पहला देश था जिसने स्पेस मिशन शुरू किया था। वे कई मामलों में पहले रहे जिसमें अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल, सैटेलाइट लॉन्च, अंतरिक्ष और पृथ्वी का कक्षा में पहला पुरुष व महिला भेजना, अंतरिक्ष में पहला जानवर भेजना, मून इफेक्ट और स्पेस वॉक, रेस ओवर, चांद के तस्वीर, स्पेस स्टेशन और मानवरहित लुनार सॉफ्ट लैंडिंग शामिल है।
चीन: चीन का स्पेस प्रोग्राम देश के राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रशासन CNSA द्वारा निर्देशित होता है। चीन की उपलब्धियों ने उसे तीसरा देश बना दिया जिसने स्वतंत्र रूप से मानव को अंतरिक्ष भेजा था। अब उनके अपने तीसरे स्पेस फ्लाइट को लॉन्च करने की योजना है। CNSA का 2020 में अपना स्थाई स्पेस स्टेशन बनाने और मंगल ग्रह और चांद के अभियानों के अन्वेषण की योजना है।
फ्रांस: यूरोप की उनकी यूरोपिन स्पेस एजेंसी है जो कि ग्रह के बाहर प्राकृतिक घटनाओं के अन्वेषण के लिए समर्पित है। एजेंसी को 1975 में स्थापित किया गया था और अब यह फ्रांस में पेरिस शहर में है। फ्रांस के स्पेस प्रोग्राम में मानव अंतरिक्ष उड़ान और अन्य ग्रहों के लिए मानव रहित अन्वेषण मिशन शामिल है।
भारत:
प्राचीन समय से भारतीयों को रॉकेट विज्ञान के लिए पहचाना जाता है। इसरो की यात्रा भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रमों के जनक माने जाने वाले डॉ. विक्रम ए साराभाई की सूझबूझ से शुरू हुई। भारत ने कम लागत में स्पेस कमर्शियल में दक्षता हासिल की है। जिन देशों के सैटेलाइट्स को इसरो ने लॉन्च किया है, उनमें अमेरिका और इसराइली सैटेलाइट भी शामिल हैं, जो ये बता रहे हैं कि सैटेलाइट प्रक्षेपण के बाजार में भारत बड़ी तेजी से अपनी जगह बना रहा है। बीते कुछ सालों में भारत ने दुनिया के 21 देशों के 79 सैटेलाइट को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया है, जिसमें गूगल और एयरबस जैसी बड़ी कंपनियों के सैटेलाइट शामिल रहे हैं।
यूनाइटेड किंगडम: यूके ने हाल ही में अपनी खुद की स्पेस एजेंसी की स्थापना की है। इसका उद्घाटन 2010 में किया गया था और अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए सरकार की नीति और बजट की जिम्मेदारी ले चुका है।
जापान: स्पेस फ्लाइट्स और मिशन के मामले में जापान एशिया के अग्रणी देशों में है। जापान के विभिन्न प्रयोजनों के लिए पास लेटेस्ट सैटेलाइट और रॉकेट हैं। वे मानवयुक्त अंतरिक्ष गतिविधियों और अन्य विज्ञान संबंधित मिशन कर चुका है।
दक्षिण कोरिया: जब स्पेस मिशन शुरू करने की बात आती है तो चीन और जापान के साथ दक्षिण कोरिया एशिया के अग्रणी देशों में हैं। इन्होंने अब तक तीन स्पेस फ्लाइट्स लॉन्च की है।
ईरान: ईरान साल 2005 से सैटेलाइट्स और स्पेस फ्लाइट्स लॉन्च कर रहा है। यह देश एशियन स्पेस रेस में सक्रिय है। इसका पहला लॉन्च संयुक्त रूप से इरानी-रूसी Sinah-1 प्रोजेक्ट था। इरान की दूसरी सैटेलाइट वास्तव में 2009 में कक्षा में स्थापित की गई थी।
इसराइल: इसराइल स्पेस एजेंसी देश के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय का हिस्सा है। यह एजेंसी देश के सभी रिसर्च प्रोग्राम को को-ऑर्डिनेट करती है और इसकी स्थापना 1983 में हुई थी।
रूसी अंतरिक्ष कार्यक्रम
रूस की अंतरिक्ष एजेंसी 2030 तक चंद्रमा पर मानव मिशन भेजने के लिए तैयार हो रही है। इसकी तैयारी में रूसी संघीय अंतरिक्ष एजेंसी रोजकॉसमस ने '70s-era ग्रेविटी मशीनों का इस्तेमाल करते हुए चंद्रमा पर लैंडिंग का परीक्षण शुरू कर दिया है। सेलेन नामक अनूठी तकनीक ने अंतरिक्ष यात्रियों को चांद की सतह पर गुरुत्वाकर्षण को अनुकरण करने की अनुमति दी है। यह 1970 के दशक में आरएससी एनर्जी द्वारा परीक्षण करने के लिए बनाया गया था। इससे यह पता लगाया जाएगा कि कैसरोनेट कैसे रोवर वाहन से बाहर निकल सकते हैं।
1969 से शुरू हुआ था सफर
आर्मस्ट्रांग ने 20 जुलाई 1969 को धरती के उपग्रह चंद्रमा पर कदम रखा था। उस समय उन्होंने कहा था कि एक इंसान का यह छोटा कदम मानव जाति के लिए बड़ा कदम साबित होगा। आर्मस्ट्रांग के इस कदम से पहले सोवियत संघ और अमेरिका में अंतरिक्ष में सफलता को लेकर होड़ मची थी। तभी 15 सितंबर 1959 को तत्कालीन सोवियत संघ के राष्ट्रपति निकिता ख्रुश्चेव अमेरिका की ऐतिहासिक यात्रा पर वाशिंगटन पहुंचे थे। वहां उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट आइजनहावर को एक गोलाकार तोहफा भेंट किया था।
यह तोहफा एक गोलाकार वस्तु थी, जिसमें सोवियत संघ का प्रतीक चिन्ह छपा हुआ था। यह लूना-2 के ऑनबोर्ड होने की नकल थी, जो एक दिन पहले ही चंद्रमा की सतह पर पहुंचने वाला पहला अंतरिक्षयान बना था। 1969 में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के ओपोलो 11 के कामयाब होने और चंद्रमा पर पहले इंसान के उतरने से पहले भी रूस चंद्रमा पर पहुंचने की होड़ में दो बार अमेरिकियों को पीछे छोड़ चुका था।
लूना-2 तेज गति से टकराया था चांद से
यह अंतरिक्ष यान 12 सितंबर, 1959 को लांच किया गया था। सोवियत संघ के अधिकारियों ने गोपनीयता के बीच एक ऐसा काम किया था जिससे दुनिया को उनकी उपलब्धि के बारे में पता चला था। उन्होंने ब्रिटिश अंतरिक्ष यात्री बर्नाड लोवल से अपने इस अभियान की गोपनीय जानकारी शेयर की। लोवल ने इस मिशन की कामयाबी के बारे में दुनिया को बताया। उन्होंने अमेरिका को भी इस उपलब्धि के बारे में जानकारी दी जो पहले सोवियत संघ की उपलब्धि को मानने के लिए तैयार नहीं था।
लूना 2 यान चंद्रमा की सतह पर 14 सितंबर, 1959 की मध्य रात्रि के बाद करीब 12 हजार किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से टकराया था। यह मिशन शीतयुद्ध के दौरान एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ से ज्यादा साबित हुआ था। यूके स्पेस एजेंसी के ह्यूमन एक्सप्लोरेशन प्रोग्राम मैनेजर के अनुसार इस अभियान से वैज्ञानिकों के चंद्रमा की सतह के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिली थी।
लूना-10 ने जुटाई थी चांद की मिट्टी के बारे में जानकारी
लूना-10 यान भी सोवियत संघ की अमेरिका पर बढ़त थी। दरअसल, लूना 10 ने कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण बातों का पता लगाया जिसमें चंद्रमा की मिट्टी के तत्व और वहां के पत्थरों के छोटे-छोटे कणों के बारे में जानकारी शामिल थी। पत्थरों के छोटे- छोटे कण स्पेस में तेजी से गतिमान रहते हैं। यह किसी भी अंतरिक्ष अभियान और चंद्रमा की सतह पर अंतरिक्ष यात्रियों के लिए खतरा बन सकता था।
मशहूर अंतरिक्ष इतिहासकार कहते हैं कि सोवियत संघ यह सोचने लगा था कि 1961 में अंतरिक्ष में पहला यात्री भेजकर या फिर 1965 में पहला स्पेस वॉक करके उसने अंतरिक्ष की रेस जीत ली है। उन्होंने कभी यह नहीं सोचा था कि अमेरिका चंद्रमा की सतह पर अंतरिक्ष यात्री को उतारने में कामयाब होगा।
1968 में अमेरिका ने बनाई निर्णायक बढ़त
अमेरिका ने बढ़त तब बनाई जब अपोलो 8 अभियान के तहत उन्होंने 1968 में चंद्रमा पर मानव सहित अंतरिक्ष यान भेजा, जो उसकी कक्षा में जाकर सफलतापूर्वक लौट आया था। एक साल के अंदर ही, अपोलो-11 चंद्रमा की सतह पर उतरने में कामयाब रहा। सोवियत संघ के पास अपोलो 8 अभियान का कोई जवाब नहीं था, जबकि उससे पहले मानव सहित अंतरिक्ष यान भेजने के मामले में भी वे अमेरिका से आगे था। आखिर ऐसा कैसे हुआ, इस बारे में नासा के इतिहासकार कहते हैं कि सोवियत संघ चंद्रमा पर अभियान भेजने में तो कामयाब रहा था लेकिन मानव सहित यान भेजने के लिए जरूर विकास नहीं कर पाया।
जानिए चंद्रयान-2 की खास बातें
रूस और अमेरिका की प्रतिस्पर्धा के बाद अब आते हैं भारत के चंद्रयान मिशन पर। दुनिया के सामने अपना लोहा मनवाने और अंतरिक्ष में लंबी छलांग लगाने के मकसद से सोमवार को दूसरे चंद्र मिशन 'चंद्रयान-2' का प्रक्षेपण हुआ। इसे बाहुबली नाम के सबसे ताकतवर रॉकेट जीएसएलवी-एमके तृतीय यान से भेजा गया।
'चंद्रयान-2' चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरेगा जहां अभी तक कोई देश नहीं पहुंच पाया है। इससे चांद के बारे में समझ सुधारने में मदद मिलेगी जिससे ऐसी नयी खोज होंगी जिनका भारत और पूरी मानवता को लाभ मिलेगा. तीन चरणों का 3,850 किलोग्राम वजनी यह अंतरिक्ष यान ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर के साथ यहां सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) से सुबह दो बजकर 51 मिनट पर आकाश की ओर उड़ान भरेगा।
पहले चंद्र मिशन की सफलता के 11 साल बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) भू-समकालिक प्रक्षेपण यान जीएसएलवी-एमके तृतीय से 978 करोड़ रुपये की लागत से बने 'चंद्रयान-2' का प्रक्षेपण हो चुका है।
'चंद्रयान-2' को चांद तक पहुंचने में 54 दिन लगेंगे। इसरो के अधिकारियों ने बताया कि गत सप्ताह अभ्यास के बाद रविवार को इस मिशन के लिए उल्टी गिनती शुरू हो गई थी।
इसरो का सबसे जटिल और अब तक का सबसे प्रतिष्ठित मिशन माने जाने वाले 'चंद्रयान-2' के साथ भारत, रूस, अमेरिका और चीन के बाद चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने वाला चौथा देश बन गया।
तिरुमला में शनिवार को भगवान वेंकटेश्वर मंदिर में पूजा-अर्चना करने के बाद इसरो के अध्यक्ष के सिवन ने बताया कि चंद्रयान-2 प्रौद्योगिकी में अगली छलांग है क्योंकि हम चांद के दक्षिणी ध्रुव के समीप सॉफ्ट लैंडिंग करने की कोशिश कर रहे हैं। सॉफ्ट लैंडिंग अत्यधिक जटिल होती है और हम तकरीबन 15 मिनट के खतरे का सामना करेंगे।'
- स्वदेशी तकनीक से निर्मित चंद्रयान-2 में कुल 13 पेलोड हैं। आठ ऑर्बिटर में, तीन पेलोड लैंडर ‘विक्रम' और दो पेलोड रोवर ‘प्रज्ञान' में हैं। पांच पेलोड भारत के, तीन यूरोप, दो अमेरिका और एक बुल्गारिया के हैं।
- चंद्रयान-2 के कुछ कलपुर्जे भुवनेश्वर के ‘सेंट्रल टूल रूम एंड ट्रेनिंग सेंटर' ने भी बनाए हैं। केंद्र सरकार द्वारा संचालित (सीटीटीसी) ने भूस्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान मार्क तीन (थ्री) के क्रायोजेनिक इंजन में ईंधन प्रवेश कराने के लिए 22 प्रकार के वॉल्व तथा अन्य पुर्जे बनाए हैं।
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